Nov 12, 2018

बालमणि अम्मा जीवनी - Biography Of Balamani Amma


• नाम :  नालापत बालमणि अम्मा।
• जन्म : 19 जुलाई 1909, केरल, मालाबार जिला के पुन्नायुर्कुलम में ।
• पिता : ।
• माता : ।
• पत्नी/पति :  वी॰एम॰ नायर ।

प्रारम्भिक जीवन :

        नालापत बालमणि अम्मा भारत से मलयालम भाषा की प्रतिभावान कवयित्रियों में से एक थीं। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों[क] में से एक महादेवी वर्मा की समकालीन थीं। उन्होंने 500 से अधिक कविताएँ लिखीं। उनकी गणना बीसवीं शताब्दी की चर्चित व प्रतिष्ठित मलयालम कवयित्रियों में की जाती है। उनकी रचनाएँ एक ऐसे अनुभूति मंडल का साक्षात्कार कराती हैं जो मलयालम में अदृष्टपूर्व है। आधुनिक मलयालम की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें मलयालम साहित्य की दादी कहा जाता है।

        अम्मा के साहित्य और जीवन पर गांधी जी के विचारों और आदर्शों का स्पष्ट प्रभाव रहा। उनकी प्रमुख कृतियों में अम्मा, मुथास्सी, मज़्हुवींट कथा आदि हैं। उन्होंने मलयालम कविता में उस कोमल शब्दावली का विकास किया जो अभी तक केवल संस्कृत में ही संभव मानी जाती थी। इसके लिए उन्होंने अपने समय के अनुकूल संस्कृत के कोमल शब्दों को चुनकर मलयालम का जामा पहनाया। उनकी कविताओं का नाद-सौंदर्य और पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है। वे प्रतिभावान कवयित्री के साथ-साथ बाल कथा लेखिका और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं। अपने पति वी॰एम॰ नायर के साथ मिलकर उन्होने अपनी कई कृतियों का अन्य भाषाओं में अनुवाद किया।

साहित्यिक :

        नालापत बालमणि अम्मा केरल की राष्ट्रवादी साहित्यकार थीं। उन्होंने राष्ट्रीय उद्बोधन वाली कविताओं की रचना की। वे मुख्यतः वात्सल्य, ममता, मानवता के कोमल भाव की कवयित्री के रूप में विख्यात हैं। फिर भी स्वतंत्रतारूपी दीपक की उष्ण लौ से भी वे अछूती नहीं रहीं। सन 1929-1939 के बीच लिखी उनकी कविताओं में देशभक्ति, गाँधी का प्रभाव, स्वतंत्रता की चाह स्पष्ट परिलक्षित होती है। इसके बाद भी उनकी रचनाएँ प्रकाशित होती रहीं। अपने सृजन से वे भारतीय आजादी में अनोखा कार्य किया। उन्होंने अपनी किशोरावस्था में ही अनेक कवितायें लिख ली थीं, जो पुस्तकाकार रूप में उनके विवाह के बाद प्रकाशित हुईं। उनके पति ने उन्हें साहित्य सृजन के लिए पर्याप्त अवसर दिया। उनकी सुविधा के लिए घर के काम-काज के साथ-साथ बच्चों को संभालने के लिए अलग से नौकर-चाकर लगा दिये थे, ताकि वे पूरा समय लेखन को समर्पित कर सकें।

        नालापत बालमणि अम्मा विवाहोपरांत अपने पति के साथ कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में रहने लगीं थीं। कलकत्ता निवास के अनुभवों ने उनकी काव्य चेतना को अत्यंत प्रभावित किया। अपनी प्रथम प्रकाशित और चर्चित कविता 'कलकत्ते का काला कुटिया' उन्होंने अपने पतिदेव के अनुरोध पर लिखी थी, जबकि अंतरात्मा की प्रेरणा से लिखी गई उनकी पहली कविता 'मातृचुंबन' है। स्वतन्त्रता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी का प्रभाव उनके लिए अपरिहार्य बन गया। उन्होंने खादी पहनी और चरखा काता। उनकी प्रारंभिक कविताओं में से एक 'गौरैया' शीर्षक कविता उस दौर में अत्यंत लोकप्रिय हुई। इसे केरल की पाठ्य-पुस्तकों में सम्मिलित किया गया। बाद में उन्होंने गर्भधारण, प्रसव और शिशु पोषण के स्त्रीजनित अनुभवों को अपनी कविताओं में पिरोया।

        कुडुंबिनी, धर्ममर्गथिल, श्री हरिदाम, प्रभांकुरम, भवनवाईल, ओंजलिनमेल, कालिककोट्टा, वेलिचथिल, अवार पादुन्नु, प्राणाम, लोकंतहरंगिल, सोपानम, मुथास्सी, मजुविन्ते कथ, अंबालाथिलेक्कु, नागराथिल, वेलालारुंबोल, अमृतमगामाया, संध्या, मेरी बेटी और कुलकाकद उनकी कविताओं हैं । उन्हें वल्लथोल अवॉर्ड, केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार, ललिथंबिका एंथराजम पुरस्कार, सरस्वती सम्मन, केंद्र साहित्य अकादमी पुरस्कार, एन वी कृष्णा वारियरअवर्ड और एज़ुथचान पुरस्कार में उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें भारत का तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'पद्म भूषण' भी मिला। उन्हें बच्चों के लिए प्यार पर उनकी कविता के लिए 'अम्मा' और 'मुथस्सी' शीर्षक मिला। उनके बेटे कमला दास ने अपनी कविता "द पेन" का अनुवाद किया। कविता एक मां की अकेलापन का वर्णन करती है।

Labels:

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home