शिव कुमार बतालवी जीवनी - Biography Of Shiv Kumar Batalvi
• नाम : शिव कुमार बतालवी।
• जन्म : 23 जुलाई 1936, बड़ा पिंड लोहटिया, शकरगढ़।
• पिता : पंडित कृष्ण गोपाल।
• माता : गृहिणी शांति देवी।
• पत्नी/पति : ।
प्रारम्भिक जीवन :
शिव कुमार 'बटालवी' पंजाबी भाषा के एक विख्यात कवि थे, जो उन रोमांटिक कविताओं के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं, जिनमें भावनाओं का उभार, करुणा, जुदाई और प्रेमी के दर्द का बखूबी चित्रण है। वे 1967 में वे साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाले सबसे कम उम्र के साहित्यकार बन गये। साहित्य अकादमी (भारत की साहित्य अकादमी) ने यह सम्मान पूरण भगत की प्राचीन कथा पर आधारित उनके महाकाव्य नाटिका लूणा (1965) के लिए दिया, जिसे आधुनिक पंजाबी साहित्य की एक महान कृति माना जाता है और जिसने आधुनिक पंजाबी किस्सागोई की एक नई शैली की स्थापना की। आज उनकी कविता आधुनिक पंजाबी कविता के अमृता प्रीतम और मोहन सिंह जैसे दिग्गजों के बीच बराबरी के स्तर पर खड़ी है, जिनमें से सभी भारत- पाकिस्तान सीमा के दोनों पक्षों में लोकप्रिय हैं।
शिव कुमार का जन्म 23 जुलाई 1936 को गांव बड़ा पिंड लोहटिया, शकरगढ़ तहसील (अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में) राजस्व विभाग के ग्राम तहसीलदार पंडित कृष्ण गोपाल और गृहिणी शांति देवी के घर में हुआ। भारत के विभाजन के बाद उनका परिवार गुरदासपुर जिले के बटाला चला आया, जहां उनके पिता ने पटवारी के रूप में अपना काम जारी रखा और बाल शिव ने प्राथमिक शिक्षा पाई। लाहौर में पंजाबी भाषा की क़िताबें छापने वाले प्रकाशक 'सुचेत क़िताब घर' ने 1992 में शिव कुमार बटालवी की चुनिंदा शायरी की एक क़िताब 'सरींह दे फूल' छापी.
प्रकाशक सुचेत क़िताब घर के मुखी मक़सूद साक़िब बताते हैं, "मैं 'माँ बोली' नाम से पंजाबी का मासिक रसाला निकालता था जिसके हर अंक में शिव कुमार बटालवी की एक दो कविताएं ज़रूर छपती थीं. पाठक शिव की शायरी के बारे में चिट्ठियाँ लिखते थे. शिव कुमार बटालवी एक कहावती जीवन जी रहे थे। कवि ने प्रेम से संबंधित कई कविताएं लिखीं, लेकिन अपने प्यार को हासिल कर पाने में ये सफल नही हो पाए। वह उस महिला से शादी नहीं कर सके जिससे इन्होंने प्रेम किया और अत्यधिक शराब पीने के कारण महज 36 वर्ष की उम्र में ही इनकी मृत्यु हो गई। बटालवी की सभी कविताएं और काम एक प्रेमी की पीड़ा और युवाओं की इच्छा मृत्यु को दर्शाती हैं। बटालवी का प्रेम अमर था, लेकिन पंजाबी लेखक गुरबख्श सिंह प्रीतलड़ी की बेटी के लिए असफल प्रेम, जो इनके जीवन में बड़ा बदलाव लाया। अपनी प्रेमिका की शादी किसी और के साथ होने के बाद, शिवकुमार बटालवी ने सहारे के लिए शराब की ओर रुख किया। शोक और दुःख के समय इन्होंने अपनी सबसे लोकप्रिय कविता - आज दिन चढ़ेया तेरे रंग वरगा लिखी। आखिरकार, 1967 में बटालवी ने एक ब्राह्मण लड़की अरुणा से शादी की और उनके साथ दो बेटियां थीं, लेकिन वह अपने पहले प्यार को भूल नहीं सके।
बटालवी की नज्मों को सबसे पहले नुसरत फतेह अली खान ने अपनी आवाज दी. नुसरत ने उनकी कविता 'मायें नी मायें मेरे गीतां दे नैणां विच' को गाया था. इसके बाद तो जगजीत सिंह - चित्रा सिंह, रबी शेरगिल, हंस राज हंस, दीदार सिंह परदेसी और सुरिंदर कौर जैसे कई गायकों ने बटालवी की कविताएं गाईं. पंजाबी शायर बटालवी उन चंद उस्तादों में गिने जाते है जिनका नाम इंडो-पाक बार्डर पर काफी फेमस हैं जैसे मोहन सिंह और अमृता प्रीतम. अमृता प्रीतम के बाद शिव कुमार बटालवी ऐसे कवि हैं जिनका पूरा कलाम पाकिस्तान में भी छपा है.
लोगों के दोहरे व्यवहार और नकलीपन की वजह से उन्होंने कवि सम्मेलनों में जाना बंद कर दिया था. एक मित्र के बार-बार आग्रह करने पर वे 1970 में बम्बई के एक कवि सम्मलेन में शामिल हुए थे. मंच पर पहुँचने के बाद जब उन्होंने बोला तो पूरे हॉल में सन्नाटा छा गया. उन्होंने बोला कि आज हर व्यक्ति खुद को कवि समझने लगा है, गली में बैठा कोई भी आदमी कवितायें लिख रहा है. इतना बोलने के बाद उन्होंने अपनी सबसे प्रसिद्ध रचना ‘इक कुड़ी जिदा नाम मोहब्बत है, गुम है’ सुनाई. इस पूरे पाठ के दौरान हॉल में सन्नाटा बना रहा. सच कहा जाए तो शिव कुमार कभी दुःख से बाहर निकल ही नहीं पाए. उन्हें हर समय कुछ न कुछ काटता ही रहा. कभी उन्हें अपनी पुरानी प्रेमिकाओं की बेवफाई याद आती रही तो कभी लोगों के नकलीपन से वे चिढ़ते रहे. इसी दौरान उन्हें 'बिरहा दा सुल्तान' कहा जाने लगा. मतलब ऐसा व्यक्ति, जिसके जीवन में दुःख ही दुःख हैं.
• जन्म : 23 जुलाई 1936, बड़ा पिंड लोहटिया, शकरगढ़।
• पिता : पंडित कृष्ण गोपाल।
• माता : गृहिणी शांति देवी।
• पत्नी/पति : ।
प्रारम्भिक जीवन :
शिव कुमार 'बटालवी' पंजाबी भाषा के एक विख्यात कवि थे, जो उन रोमांटिक कविताओं के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं, जिनमें भावनाओं का उभार, करुणा, जुदाई और प्रेमी के दर्द का बखूबी चित्रण है। वे 1967 में वे साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाले सबसे कम उम्र के साहित्यकार बन गये। साहित्य अकादमी (भारत की साहित्य अकादमी) ने यह सम्मान पूरण भगत की प्राचीन कथा पर आधारित उनके महाकाव्य नाटिका लूणा (1965) के लिए दिया, जिसे आधुनिक पंजाबी साहित्य की एक महान कृति माना जाता है और जिसने आधुनिक पंजाबी किस्सागोई की एक नई शैली की स्थापना की। आज उनकी कविता आधुनिक पंजाबी कविता के अमृता प्रीतम और मोहन सिंह जैसे दिग्गजों के बीच बराबरी के स्तर पर खड़ी है, जिनमें से सभी भारत- पाकिस्तान सीमा के दोनों पक्षों में लोकप्रिय हैं।
शिव कुमार का जन्म 23 जुलाई 1936 को गांव बड़ा पिंड लोहटिया, शकरगढ़ तहसील (अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में) राजस्व विभाग के ग्राम तहसीलदार पंडित कृष्ण गोपाल और गृहिणी शांति देवी के घर में हुआ। भारत के विभाजन के बाद उनका परिवार गुरदासपुर जिले के बटाला चला आया, जहां उनके पिता ने पटवारी के रूप में अपना काम जारी रखा और बाल शिव ने प्राथमिक शिक्षा पाई। लाहौर में पंजाबी भाषा की क़िताबें छापने वाले प्रकाशक 'सुचेत क़िताब घर' ने 1992 में शिव कुमार बटालवी की चुनिंदा शायरी की एक क़िताब 'सरींह दे फूल' छापी.
प्रकाशक सुचेत क़िताब घर के मुखी मक़सूद साक़िब बताते हैं, "मैं 'माँ बोली' नाम से पंजाबी का मासिक रसाला निकालता था जिसके हर अंक में शिव कुमार बटालवी की एक दो कविताएं ज़रूर छपती थीं. पाठक शिव की शायरी के बारे में चिट्ठियाँ लिखते थे. शिव कुमार बटालवी एक कहावती जीवन जी रहे थे। कवि ने प्रेम से संबंधित कई कविताएं लिखीं, लेकिन अपने प्यार को हासिल कर पाने में ये सफल नही हो पाए। वह उस महिला से शादी नहीं कर सके जिससे इन्होंने प्रेम किया और अत्यधिक शराब पीने के कारण महज 36 वर्ष की उम्र में ही इनकी मृत्यु हो गई। बटालवी की सभी कविताएं और काम एक प्रेमी की पीड़ा और युवाओं की इच्छा मृत्यु को दर्शाती हैं। बटालवी का प्रेम अमर था, लेकिन पंजाबी लेखक गुरबख्श सिंह प्रीतलड़ी की बेटी के लिए असफल प्रेम, जो इनके जीवन में बड़ा बदलाव लाया। अपनी प्रेमिका की शादी किसी और के साथ होने के बाद, शिवकुमार बटालवी ने सहारे के लिए शराब की ओर रुख किया। शोक और दुःख के समय इन्होंने अपनी सबसे लोकप्रिय कविता - आज दिन चढ़ेया तेरे रंग वरगा लिखी। आखिरकार, 1967 में बटालवी ने एक ब्राह्मण लड़की अरुणा से शादी की और उनके साथ दो बेटियां थीं, लेकिन वह अपने पहले प्यार को भूल नहीं सके।
बटालवी की नज्मों को सबसे पहले नुसरत फतेह अली खान ने अपनी आवाज दी. नुसरत ने उनकी कविता 'मायें नी मायें मेरे गीतां दे नैणां विच' को गाया था. इसके बाद तो जगजीत सिंह - चित्रा सिंह, रबी शेरगिल, हंस राज हंस, दीदार सिंह परदेसी और सुरिंदर कौर जैसे कई गायकों ने बटालवी की कविताएं गाईं. पंजाबी शायर बटालवी उन चंद उस्तादों में गिने जाते है जिनका नाम इंडो-पाक बार्डर पर काफी फेमस हैं जैसे मोहन सिंह और अमृता प्रीतम. अमृता प्रीतम के बाद शिव कुमार बटालवी ऐसे कवि हैं जिनका पूरा कलाम पाकिस्तान में भी छपा है.
लोगों के दोहरे व्यवहार और नकलीपन की वजह से उन्होंने कवि सम्मेलनों में जाना बंद कर दिया था. एक मित्र के बार-बार आग्रह करने पर वे 1970 में बम्बई के एक कवि सम्मलेन में शामिल हुए थे. मंच पर पहुँचने के बाद जब उन्होंने बोला तो पूरे हॉल में सन्नाटा छा गया. उन्होंने बोला कि आज हर व्यक्ति खुद को कवि समझने लगा है, गली में बैठा कोई भी आदमी कवितायें लिख रहा है. इतना बोलने के बाद उन्होंने अपनी सबसे प्रसिद्ध रचना ‘इक कुड़ी जिदा नाम मोहब्बत है, गुम है’ सुनाई. इस पूरे पाठ के दौरान हॉल में सन्नाटा बना रहा. सच कहा जाए तो शिव कुमार कभी दुःख से बाहर निकल ही नहीं पाए. उन्हें हर समय कुछ न कुछ काटता ही रहा. कभी उन्हें अपनी पुरानी प्रेमिकाओं की बेवफाई याद आती रही तो कभी लोगों के नकलीपन से वे चिढ़ते रहे. इसी दौरान उन्हें 'बिरहा दा सुल्तान' कहा जाने लगा. मतलब ऐसा व्यक्ति, जिसके जीवन में दुःख ही दुःख हैं.
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