Nov 12, 2018

अब्दुल रहीम खान-ए-खाना जीवनी - Biography Of Abdul Rahim Khan-I-Khana



 नाम :  अब्दुल रहीम ख़ान-ए-ख़ाना।
• जन्म : सन् १५५६, लाहौर।
• पिता : ।
• माता : ।
• पत्नी/पति :  ।

प्रारम्भिक जीवन :
        अबदुर्ररहीम खानखाना का जन्म संवत् १६१३ ई. में इतिहास प्रसिद्ध बैरम खाँ के घर लाहौर में हुआ था। संयोग से उस समय हुमायूँ सिकंदर सूरी का आक्रमण का प्रतिरोध करने के लिए सैन्य के साथ लाहौर में मौजूद थे। बैरम खाँ के घर पुत्र की उत्पति की खबर सुनकर वे स्वयं वहाँ गये और उस बच्चे का नाम “रहीम’ रखा। रहीम के पिता बैरम खाँ तेरह वर्षीय अकबर के अतालीक (शिक्षक) तथा अभिभावक थे। बैरम खाँ खान-ए-खाना की उपाधि से सम्मानित थे। वे हुमायूँ के साढ़ू और अंतरंग मित्र थे। रहीम की माँ वर्तमान हरियाणा प्रांत के मेवाती राजपूत जमाल खाँ की सुंदर एवं गुणवती कन्या सुल्ताना बेगम थी।

        जब रहीम पाँच वर्ष के ही थे, तब गुजरात के पाटण नगर में सन १५६१ में इनके पिता बैरम खाँ की हत्या कर दी गई। रहीम का पालन-पोषण अकबर ने अपने धर्म-पुत्र की तरह किया। शाही खानदान की परंपरानुरूप रहीम को 'मिर्जा खाँ' का ख़िताब दिया गया। रहीम ने बाबा जंबूर की देख-रेख में गहन अध्ययन किया। शिक्षा समाप्त होने पर अकबर ने अपनी धाय की बेटी माहबानो से रहीम का विवाह करा दिया। इसके बाद रहीम ने गुजरात, कुम्भलनेर, उदयपुर आदि युद्धों में विजय प्राप्त की। इस पर अकबर ने अपने समय की सर्वोच्च उपाधि 'मीरअर्ज' से रहीम को विभूषित किया। सन १५८४ में अकबर ने रहीम को खान-ए-खाना की उपाधि से सम्मानित किया। रहीम का देहांत ७१ वर्ष की आयु में सन १६२७ में हुआ। रहीम को उनकी इच्छा के अनुसार दिल्ली में ही उनकी पत्नी के मकबरे के पास ही दफना दिया गया। यह मज़ार आज भी दिल्ली में मौजूद हैं। रहीम ने स्वयं ही अपने जीवनकाल में इसका निर्माण करवाया था।

        अब्दुल रहीम खान-ए-खाना ने बाबर की आत्मकथा को तुर्की से फारसी में अनुवाद किया था। अब्दुल रहीम खान-ए-खाना थे तो मुस्लिम, परन्तु भगवान कृष्ण के एक अनन्य भक्त थे। रहीम भक्ति काल से संबंधित थे और भगवान कृष्ण की स्तुति में हिंदी में दोहे लिखा करते थे। उस समय कला और साहित्य में हिंदू और इस्लाम दोनों के बीच सिद्धांतों का एकीकरण था। उस समय विश्वसनीयता दो संप्रदायों में प्रचलित थी एक सगुण (इसमें माना जाता था कि भगवान कृष्ण, विष्णु एक आदि शक्ति का अवतार हैं) और दूसरा निर्गुण (जिसमें माना जाता था कि भगवान के पास कोई निश्चित रूप और आकार नहीं है)। रहीम सगुण भक्ति काव्य धारा के अनुयायी थे और कृष्ण के बारे में लिखा था।

        मुस्लिम धर्म के अनुयायी होते हुए भी रहीम ने अपनी काव्य रचना द्वारा हिन्दी साहित्य की जो सेवा की वह अद्भुत है। रहीम की कई रचनाएँ प्रसिद्ध हैं जिन्हें उन्होंने दोहों के रूप में लिखा। रहीम के ग्रंथो में रहीम दोहावली या सतसई, बरवै, मदनाष्ठ्क, राग पंचाध्यायी, नगर शोभा, नायिका भेद, श्रृंगार, सोरठा, फुटकर बरवै, फुटकर छंद तथा पद, फुटकर कवितव, सवैये, संस्कृत काव्य प्रसिद्ध हैं। रहीम ने तुर्की भाषा में लिखी बाबर की आत्मकथा "तुजके बाबरी" का फारसी में अनुवाद किया। "मआसिरे रहीमी" और "आइने अकबरी" में इन्होंने "खानखाना" व रहीम नाम से कविता की है। रहीम व्यक्तित्व बहुत प्रभावशाली था। वे मुसलमान होकर भी कृष्ण भक्त थे। रहीम ने अपने काव्य में रामायण, महाभारत, पुराण तथा गीता जैसे ग्रंथों के कथानकों को लिया है। आपने स्वयं को को "रहिमन" कहकर भी सम्बोधित किया है। इनके काव्य में नीति, भक्ति, प्रेम और श्रृंगार का सुन्दर समावेश मिलता है।

        आख़िरकार हारकर अकबर के कहने पर बैरम ख़ाँ हज के लिए चल पड़े। वह गुजरात में पाटन के प्रसिद्ध सहस्रलिंग तालाब में नौका विहार या नहाकर जैसे ही निकले, तभी उनके एक पुराने विरोधी - अफ़ग़ान सरदार मुबारक ख़ाँ ने धोखे से उनकी पीठ में छुरा भोंककर उनका वध कर डाला। कुछ भिखारी लाश उठाकर फ़क़ीर हुसामुद्दीन के मक़बरे में ले गए और वहीं पर बैरम ख़ाँ को दफ़ना दिया गया। 'मआसरे रहीमी' ग्रंथ में मृत्यु का कारण शेरशाह के पुत्र सलीम शाह की कश्मीरी बीवी से हुई लड़की को माना गया है, जो हज के लिए बैरम ख़ाँ के साथ जा रही थी। इससे अफ़ग़ानियों को अपनी बेहज़्ज़ती महसूस हुई और उन्होंने हमला करके बैरम ख़ाँ को समाप्त कर दिया।

        लेकिन यह सम्भव नहीं लगता, क्योंकि ऐसा होने पर तो रहीम के लिए भी ख़तरा बढ़ जाता। उस वक़्त पूर्ववर्ती शासक वंश के उत्तराधिकारी को समाप्त कर दिया जाता था। वह अफ़ग़ानी मुबारक ख़ाँ मात्र बैरम ख़ाँ का वध कर ही नहीं रुका, बल्कि डेरे पर आक्रमण करके लूटमार भी करने लगा। तब स्वामीभक्त बाबा जम्बूर और मुहम्मद अमीर 'दीवाना' चार वर्षीय रहीम को लेकर किसी तरह अफ़ग़ान लुटेरों से बचते हुए अहमदाबाद जा पहुँचे। चार महीने वहाँ रहकर फिर वे आगरा की तरफ़ चल पड़े। अकबर को जब अपने संरक्षक की हत्या की ख़बर मिली तो उसने रहीम और परिवार की हिफ़ाज़त के लिए कुछ लोगों को इस आदेश के साथ वहाँ भेजा कि उन्हें दरबार में ले आएँ।

ग्रन्थ :

• रहीम दोहावली - रहीम के दोहों का विशाल संकलन
• नगर-शोभा / रहीम
• श्रंगार-सोरठा / रहीम
• मदनाष्टक / रहीम
• संस्कृत श्लोक / रहीम
• बरवै नायिका-भेद / रहीम
• बरवै भक्तिपरक / रहीम
• फुटकर पद / रहीम


रचनाएँ :
• अति अनियारे मानौ सान दै सुधारे
• पट चाहे तन, पेट चाहत छदन
• बड़ेन सों जान पहिचान कै रहीम काह
• मोहिबो निछोहिबो सनेह में तो नयो नाहिं
• जाति हुती सखी गोहन में
• जिहि कारन बार न लाये कछू
• दीन चहैं करतार जिन्हें सुख
• पुतरी अतुरीन कहूँ मिलि कै
• कौन धौं सीखि ’रहीम’ इहाँ
• छबि आवन मोहनलाल की
• कमल-दल नैननि की उनमानि
• उत्तम जाति है बाह्मनी


  

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