Nov 12, 2018

माइकल मधुसूदन दत्त जीवनी - Biography Of Michael Madhusudan Dutt


• नाम :  माइकल मधुसूदन दत्त।
• जन्म : 29 जून,1873, बंगाल।
• पिता :  राजनारायण दत्त।
• माता : ।
• पत्नी/पति :  ।

प्रारम्भिक जीवन :

        मधुसुदन दत्त का जन्म बंगाल के जेस्सोर जिले के सागादरी नाम के गाँव मे हुआ था। अब यह जगह बांग्लादेश मे है। इनके पिता राजनारायण दत्त कलकत्ते के प्रसिद्ध वकील थे। 1837 ई. में हिंदू कालेज में प्रवेश किया। मधुसूदन दत्त अत्यंत कुशाग्र बुद्धि के विद्यार्थी थे। एक ईसाई युवती के प्रेमपाश में बंधकर उन्होंने ईसाई धर्म ग्रहण करने के लिये 1843 ई0 में हिंदू कालेज छोड़ दिया। कालेज जीवन में माइकेल मधुसूदन दत्त ने काव्यरचना आरंभ कर दी थी। हिंदू कालेज छोड़ने के पश्चात् वे बिशप कालेज में प्रविष्ट हुए। इस समय उन्होंने कुछ फारसी कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद किया। आर्थिक कठिनाईयों के कारण 1848 में उन्हें बिशप कालेज भी छोड़ना पड़ा। तत्पश्चात् वे मद्रास चले गए जहाँ उन्हें गंभीर साहित्यसाधना का अवसर मिला।

        19वीं शती का उत्तरार्ध बँगला साहित्य में प्राय: मधुसूदन-बंकिम युग कहा जाता है। माइकेल मधुसूदन दत्त बंगाल में अपनी पीढ़ी के उन युवकों के प्रतिनिधि थे, जो तत्कालीन हिंदू समाज के राजनीतिक और सांस्कृतिक जीवन से क्षुब्ध थे और जो पश्चिम की चकाचौंधपूर्ण जीवन पद्धति में आत्मभिव्यक्ति और आत्मविकास की संभावनाएँ देखते थे। माइकेल अतिशय भावुक थे। यह भावुकता उनकी आरंभ की अंग्रेजी रचनाओं तथा बाद की बँगला रचनाओं में व्याप्त है। बँगला रचनाओं को भाषा, भाव और शैली की दृष्टि से अधिक समृद्धि प्रदान करने के लिये उन्होनें अँगरेजी के साथ-साथ अनेक यूरोपीय भाषाओं का गहन अध्ययन किया। संस्कृत तथा तेलुगु पर भी उनका अच्छा अधिकार था।

लेखन :

        माइकल मधुसूदन दत्त ने मद्रास में कुछ पत्रों के सम्पादकीय विभागों में भी काम किया। इनकी पहली कविता अंग्रेज़ी भाषा में 1849 ई. प्रकाशित हुई। पर इन्हें वास्ताविक प्रतिष्ठा बंगला भाषा की रचनाओं से ही मिल सकी। एक अंग्रेज़ी नाटक का बंगला में अनुवाद करते समय मधुसूदन दत्त को मूल बंगला भाषा में एक अच्छा नाटक लिखने की प्रेरणा हुई। उनका पहला बंगला नाटक था- "शार्मिष्ठा"। इसके प्रकाशन के साथ ही वे बंगला के साहित्यकार हो गए। उनके दो अन्य नाटक थे- 'पद्मावती' और 'कृष्ण कुमारी'। उनके लिखे दो परिहास नाटक भी बहुत प्रसिद्ध हुए- 'एकेई कि बले सभ्यता' और 'बूड़ो शालिकेर घोड़े रो'।

        चौधरी, रोसिंका, औपनिवेशिक बंगाल में सज्जन कवि: उभरती राष्ट्रवाद और ओरिएंटलिस्ट परियोजना (कलकत्ता: सीगल, 2002). दत्ता, माइकल मधुसूदन, द स्लेइंग ऑफ मेघानाडा: औपनिवेशिक बंगाल से रामायण, का अनुवाद और क्लिंटन बी सेली (ऑक्सफोर्ड: ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 2004) द्वारा एक परिचय. गुप्ता, क्षेत्र (एड।), मधुसूदन रचानाबाली (कलकत्ता: साहित्य संसद, 1993) [बंगाली में एकत्रित कार्य]. मुर्शिद, गुलाम, आशा से लालसा: माइकल मधुसूदन दत्त की एक जीवनी (नई दिल्ली: ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 2003). मुर्शिद, गुलाम (एड।), द हार्ट ऑफ अ विद्रोही कवि: माइकल मधुसूदन दत्त के पत्र (नई दिल्ली: ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 2004.

वकालत :

        सन 1862 ई. में माइकल मधुसूदन दत्त इंग्लैंड चले गए। वहाँ आर्थिक समस्याएँ उत्पन्न होने पर ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने उनके लिए आठ हज़ार रुपये भेजे थे। ये रुपये मधुसूदन जी ने बाद में उन्हें लौटाए। इंग्लैंड से वकालत की डिग्री लेकर उन्होंने सन 1867 ई. में 'कलकत्ता हाईकोट' में वकालत आंरभ की। अब एक बैरिस्टर की हैसियत से उन्होंने पर्याप्त धन कमाया। किन्तु राजसी रहन-सहन के कारण उनके ऊपर काफ़ी ऋण हो गया था। ऐसी स्थिति में उन्हें कोलकाता छोड़कर हुगली की उत्तरपाड़ा लाइब्रेरी में जाकर रहना पड़ा।

        शुरुआत में वह लंदन में मनोमोहन घोस और सत्येंद्रनाथ टैगोर के साथ रहे और उन्हें ग्रे इन में भर्ती कराया गया। उनकी दूसरी पत्नी, हेनरीएटा और बच्चे 1863 में उनके साथ शामिल हो गए। वित्तीय कठिनाइयों से परेशान और नस्लीय पूर्वाग्रह का सामना करना, वे Versailles में चले गए दत्त बार बार रात्रिभोज में भाग लेने के लिए लंदन लौटते रहे और थोड़ी देर के लिए शेफर्ड बुश में रहते थे। उन्हें 17 नवंबर 1866 को बार में बुलाया गया था। दत्त 1867 में भारत वापस लौटे और कानूनी करियर चलाने की कोशिश की। 1873 में उनकी मृत्यु हो गई।

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