Nov 12, 2018

मीर ताकी मीर जीवनी - Biography Of Mir Taqi Mir


• नाम :  ख़ुदा-ए-सुखन मोहम्मद तकी उर्फ मीर तकी "मीर"।
• जन्म : आगरा।
• पिता :  पंडित कृष्ण गोपाल।
• माता : गृहिणी शांति देवी।
• पत्नी/पति :  ।

प्रारम्भिक जीवन :

        ख़ुदा-ए-सुखन मोहम्मद तकी उर्फ मीर तकी "मीर" उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर थे। मीर को उर्दू के उस प्रचलन के लिए याद किया जाता है जिसमें फ़ारसी और हिन्दुस्तानी के शब्दों का अच्छा मिश्रण और सामंजस्य हो। अहमद शाह अब्दाली और नादिरशाह के हमलों से कटी-फटी दिल्ली को मीर तक़ी मीर ने अपनी आँखों से देखा था। इस त्रासदी की व्यथा उनकी रचनाओं मे दिखती है। इनका जन्म आगरा (अकबरपुर) मे हुआ था। उनका बचपन अपने पिता की देखरेख मे बीता। उनके प्यार और करुणा के जीवन में महत्त्व के प्रति नजरिये का मीर के जीवन पे गहरा प्रभाव पड़ा जिसकी झलक उनके शेरो मे भी देखने को मिलती है | 

        पिता के मरणोपरांत, ११ की वय मे, इनके उपर ३०० रुपयों का कर्ज था और पैतृक सम्पत्ति के नाम पर कुछ किताबें। १७ साल की उम्र में वे दिल्ली आ गए। बादशाह के दरबार में १ रुपया वजीफ़ा मुकर्रर हुआ। इसको लेने के बाद वे वापस आगरा आ गए। १७३९ में फ़ारस के नादिरशाह के भारत पर आक्रमण के दौरान समसामुद्दौला मारे गए और इनका वजीफ़ा बंद हो गया। इन्हें आगरा भी छोड़ना पड़ा और वापस दिल्ली आए। अब दिल्ली उजाड़ थी और कहा जाता है कि नादिर शाह ने अपने मरने की झूठी अफ़वाह पैलाने के बदले में दिल्ली में एक ही दिन में २०-२२००० लोगों को मार दिया था और भयानक लूट मचाई थी।

        मीर एक समय में रहते थे जब उर्दू भाषा और कविता एक प्रारंभिक अवस्था में थी - और मीर की सहज सौंदर्य भावना ने उन्हें स्वदेशी अभिव्यक्ति और फारसी संस्कृति और मुक्ति के बीच संतुलन को हड़ताल करने में मदद की, जो कि रिक्त से आ रही है या हिंदुई अपनी मूल हिंदुस्तान पर अपनी भाषा का पीछा करते हुए, उन्होंने इसे फारसी उपन्यास और वाक्यांशशास्त्र के छिड़काव से खारिज कर दिया, और एक बार, सरल, प्राकृतिक और सुरुचिपूर्ण में एक काव्य भाषा बनाई। अपने परिवार के सदस्यों की मौत, पिछले झटके (दिल्ली में दर्दनाक चरणों सहित) के साथ, मिर के लेखन के लिए एक मजबूत मार्ग उधार देती है - और वास्तव में मीर पथ और उदासीनता की कविता के लिए प्रसिद्ध है। मीर के प्रसिद्ध समकालीन, एक अविश्वसनीय प्रतिष्ठा का एक उर्दू कवि भी मिर्जा रफी सौदा था। मीर ताकी मिर्जा गालिब उर्दू कविता के प्रेमी अक्सर गालिब या इसके विपरीत मीर की श्रेष्ठता पर चर्चा करते हैं। यह ध्यान दिया जा सकता है कि गालिब ने अपनी कुछ कविताओं के माध्यम से खुद को स्वीकार किया था कि मीर वास्तव में एक प्रतिभाशाली था जो सम्मान के योग्य था।

        'मीर' साहब के अपने कहे के अनुसार उनके बारे में राय कैसे बनायी जा सकती हैं? तटस्थ रुप से देखने पर दिखाई देता है कि मीर पर बचपन और जवानी के दिनों में ज़रुर मुसीबतें पड़ी, लेकिन प्रौढ़ावस्था और बुढ़ापे में उन्हें बहुत सुख और सम्मान मिला। जिन लोगों के साथ ऐसा होता है, वे साधारण दूसरों के प्रति और अधिक सहानुभूति रखने वाले मृदु-भाषी और गंभीर हो जाते हैं। 'मीर' की कटुता उनके अंत समय तक न गई। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से इसका एक ही कारण हो सकता है। वह यह कि 'मीर' प्रेम के मामले में हमेशा असफल रहे और जीवन के इस बड़े भारी प्रभाव ने उनके अवचेतन मस्तिष्क में घर करके उनमें असाधारण और कटुता भर दी।
मीर के कुल्लियात में 6 बड़े - बड़े दीवान ग़ज़लों के हैं। इनमें कुल मिलाकर 1839 ग़ज़लें और 83 फुटकर शेर हैं। इनके अलावा आठ क़सीदे, 31 मसनवियाँ, कई हजवें, 103 रुबाइयां, तीन शिकारनामें आदि बहुत सी कविताएं हैं। कुछ वासोख़्त भी हैं। इस कुल्लियात का आकार बहुत बड़ा है।

        इसके अतिरिक्त एक दीवान फ़ारसी का है जो दुर्भाग्यवश अभी अप्रकाशित है। कई मर्सिए भी लिखे हैं जो अपने ढंग के अनूठे हैं। एक पुस्तक फ़ारसी में 'फ़ैज़े-मीर' के नाम से लिखी है। इसमें अंत में कुछ हास्य-प्रसंग और कहानियाँ हैं। इनमें कुछ काफ़ी अश्लील हैं। इनसे तत्कालीन समाज की रुचि का अनुमान किया जा सकता है। फ़ारसी ही में उर्दू शायरों की एक परिचय पुस्तक 'नुकातुश्शोअपा' है जिसमें अपने पूर्ववर्ती और समकालीन कवियों का उल्लेख किया है। आत्म-चरित 'ज़िक्र-ए-मीर' फ़ारसी में लिखा है। 

        इस में अपने साहित्य पर प्रकाश नहीं डाला है बल्कि अपने निजी जीवन की घटनाओं के साथ ही तत्कालीन राजनीतिक उथल-पुथल और लड़ाइयों का उल्लेख है। यह पुस्तक इतिहास के दृष्टिकोण से भी महत्त्वपूर्ण है। फ़ारसी दीवान को छोड़कर उपर्युक्त सभी पुस्तकें प्रकाशित हो गई हैं। किंतु इस समय भारत के बाज़ारों में प्राप्य नहीं हैं। यहां तक कि उर्दू कुल्लियात भी पुस्तकालयों के अलावा कहीं देखने को नहीं मिलता। अब मालूम हुआ है कि लखनऊ का 'राम कुमार भार्गव प्रेस' कुल्लियात को फिर से छपाने का प्रबंध कर रहा है। उर्दू के महानतम कवि की रचनाओं की यह दशा दु:ख का विषय है।

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