गिरीश कर्नाड जीवनी - Biography Of Girish Karnad
नाम : गिरीश रघुनाथ कर्नाड।
जन्म : 19 May 1938, माथेरान।
पिता : रघुनाथ कर्नाड।
माता : कृष्णाबाई कर्नाड ।
पत्नी/पति : ।
प्रारम्भिक जीवन :
गिरीश रघुनाथ कर्णद एक भारतीय अभिनेता, फिल्म निर्देशक, कन्नड़ लेखक, नाटककार और रोड्स विद्वान हैं, जो मुख्य रूप से दक्षिण भारतीय सिनेमा और बॉलीवुड में काम करते हैं। 1960 के दशक में नाटककार के रूप में उनकी वृद्धि ने कन्नड़ में आधुनिक भारतीय नाटक लेखन की उम्र को चिह्नित किया, जैसे बादल सरकार ने बंगाली में किया, मराठी में विजय तेंदुलकर और हिंदी में मोहन राकेश। वह 1 99 8 में ज्ञानपीठ अवॉर्ड प्राप्तकर्ता हैं, जो भारत में सम्मानित उच्चतम साहित्यिक सम्मान है।
चार दशकों के लिए कर्णद नाटक लिख रहा है, अक्सर समकालीन मुद्दों से निपटने के लिए इतिहास और पौराणिक कथाओं का उपयोग कर रहा है। उन्होंने अपने नाटकों का अंग्रेजी में अनुवाद किया है और प्रशंसा प्राप्त की है। उनके नाटकों का अनुवाद कुछ भारतीय भाषाओं में किया गया है और इब्राहिम अल्काज़ी, बी वी करंथ, एलिक पदमसी, प्रसन्ना, अरविंद गौर, सत्यदेव दुबे, विजया मेहता, श्यामानंद जालान, अमल एलाना और जफर मोहियुद्दीन जैसे निर्देशकों द्वारा निर्देशित किया गया है।
वह भारतीय सिनेमा की दुनिया में एक अभिनेता, निर्देशक और पटकथा लेखक के रूप में काम कर रहे हैं, हिंदी और कन्नड़ सिनेमा में, रास्ते में पुरस्कार कमाते हैं। उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मश्री और पद्म भूषण से सम्मानित किया गया और चार फिल्मफेयर पुरस्कार जीते, जिनमें से तीन सर्वश्रेष्ठ निर्देशक कन्नड़ और चौथे फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ पटकथा पुरस्कार के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार हैं।
गिरीश कर्नाड केवल एक सफल पटकथा लेखक ही नहीं, बल्कि एक बेहतरीन फ़िल्म निर्देशक भी हैं। उन्होंने वर्ष 1970 में कन्नड़ फ़िल्म 'संस्कार' से अपने सिने कैरियर को प्रारम्भ किया था। इस फ़िल्म की पटकथा उन्होंने स्वयं ही लिखी थी। इस फ़िल्म को कई पुरस्कार प्राप्त हुए थे। इसके पश्चात श्री कर्नाड ने और भी कई फ़िल्में कीं। उन्होंने कई हिन्दी फ़िल्मों में भी काम किया था।
इन फ़िल्मों में 'निशांत', 'मंथन' और 'पुकार' आदि उनकी कुछ प्रमुख फ़िल्में हैं। गिरीश कर्नाड ने छोटे परदे पर भी अनेक महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम और 'सुराजनामा' आदि सीरियल पेश किए हैं। उनके कुछ नाटक, जिनमें 'तुग़लक' आदि आते हैं, सामान्य नाटकों से कई मामलों में पूरी तरह से भिन्न हैं। गिरीश कर्नाड 'संगीत नाटक अकादमी' के अध्यक्ष पद को भी सुशोभित कर चुके हैं।
स्त्री-पुरुष के आधे-अधूरेपन की त्रासदी और उनके उलझावपूर्ण संबंधों की अबूझ पहेली को देखने-दिखानेवाले नाटक तो समकालीन भारतीय रंग-परिदृश्य में और भी हैं, लेकिन जहाँ तक सम्पूर्णता की अंतहीन तलाश की असह्य यातनापूर्ण परिणति तथा बुद्धि (मन-आत्मा) और देह के सनातन महत्ता-संघर्ष के परिणाम का प्रश्न है-गिरीश कारनाड का हयवदन, कई दृष्टियों से, निश्चय ही एक अनूठा नाट्य प्रयोग है। इसमें पारंपरिक अथवा लोक-नाट्य रूपों के कई जीवंत रंग-तत्वों का विरल रचनात्मक इस्तेमाल किया गया है।
बेताल-पच्चीसी की सिरों और धड़ों की अदला-बदली की असमंजस-भरी प्राचीन कथा तथा टामस मान की ‘ट्रांसपोज्ड हैड्स’ की द्वंद्वपूर्ण आधुनिक कहानी पर आधारित यह नाटक जिस तरह देवदत्त, पद्मिनी और किल के प्रेम-त्रिकोण के समानान्तर हयवदन के उपाख्यान को गणेश-वंदना, भागवत, नट, अर्धपटी, अभिनटन, मुखौटे, गुड्डे-गुड़ियों और गीत-संगीत के माध्यम से एक लचीले रंग-शिल्प में पेश करता है, वह अपने-आप में केवल कन्नड़ नाट्य लेखन को ही नहीं, वरन् सम्पूर्ण आधुनिक भारतीय रंगकर्म की एक उल्लेखनीय उपलब्धि सिद्ध हुआ है।
पुरस्कार :
• 1972 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
• 1974 में पद्मश्री
• 1992 में पद्मभूषण
• 1992 में कन्नड़ साहित्य अकादमी पुरस्कार
• 1994 में साहित्य अकादमी पुरस्कार
• 1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार
• 1998 में कालिदास सम्मान
• इसके अतिरिक्त गिरीश कर्नाड को कन्नड़ फ़िल्म ‘संस्कार’ के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है।
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