Nov 1, 2019

अजंता-एलोरा की गुफाएँ |Ajanta and Ellora Caves, Maharashtra



 अजंता-एलोरा की गुफाएँ |Ajanta and Ellora Caves, Maharashtra


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विश्वप्रसिद्ध अंजता-एलोरा की गुफाएँ हमेशा से ही पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र रही हैं। यहाँ की सुंदर चित्रकारी व मूर्तियाँ कलाप्रेमियों के लिए किसी जन्नत से कम नहीं हैं। हरीतिमा की चादर ओढ़ी यहाँ की चट्टानें अपने भीतर छुपे हुए इतिहास के इस धरोहर की गौरवगाथा बयाँ कर रही हैं। विशालकाय चट्टानें, हरियाली, सुंदर मूर्तियाँ और इस पर यहाँ बहने वाली वाघोरा नदी जैसे यहाँ की खूबसूरती को परिपूर्णता प्रदान करती है। 

अजंता-एलोरा की गुफाएँ महाराष्ट्र के शहर के समीप स्थित‍ हैं। ये गुफाएँ बड़ी-बड़ी चट्टानों को काटकर बनाई गई हैं। 29 गुफाएँ अजंता में तथा 34 गुफाएँ एलोरा में हैं। अब इन गुफाओं को वर्ल्ड हेरिटेज के रूप में संरक्षित किया जा रहा है ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी भी भारतीय कला की इस उत्कृष्ट मिसाल को देख सके। 
अजंता एलोरा की सुंदर चित्रकारी
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अजंता की गुफाएँ : 
औरंगाबाद से 101 किमी दूर उत्तर में अजंता की गुफाएँ स्थित हैं। सह्याद्रि की पहाडि़यों पर स्थित इन 30 गुफाओं में लगभग 5 प्रार्थना भवन और 25 हैं। इन गुफाओं की खोज आर्मी ऑफिसर जॉन स्मिथ व उनके दल द्वारा सन् 1819 में की गई थी। वे यहाँ शिकार करने आए थे तभी उन्हें कतारबद्ध 29 गुफाओं की एक श्रृंखला नजर आई और इस तरह ये गुफाएँ प्रसिद्ध हो गई। 

घोड़े की नाल के आकार में निर्मित ये गुफाएँ अत्यन्त ही प्राचीन व ऐतिहासिक महत्व की है। इनमें 200 ईसा पूर्व से 650 ईसा पश्चात तक के बौद्ध धर्म का चित्रण किया गया है। अजंता की गुफाओं में दीवारों पर खूबसूरत अप्सराओं व राजकुमारियों के विभिन्न मुद्राओं वाले सुंदर चित्र भी उकेरे गए है, जो यहाँ की उत्कृष्ट चित्रकारी व मूर्तिकला के बेहद ही सुंदर नमूने है। 
अजंता एलोरा की गुफाएँ
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अजंता की गुफाओं को दो भागों में बाँटा जा सकता है। एक भाग में बौद्ध धर्म के हीनयान और दूसरे भाग में महायान संप्रदाय की झलक देखने को मिलती है। हीनयान वाले भाग में 2 चैत्य हॉल (प्रार्थना हॉल) और 4 विहार (बौद्ध भिक्षुओं के रहने के स्थान) है तथा महायान वाले भाग में 3 चैत्य हॉल और 11 विहार है। 

ये 19वीं शताब्दी की गुफाएँ है, जिसमें बौद्ध भिक्षुओं की मूर्तियाँ व चित्र है। हथौड़े और चीनी की सहायता से तराशी गई ये मूर्तियाँ अपने आप में अप्रतिम सुंदरता को समेटे है। 

एलोरा की गुफाएँ : 
औरंगाबाद से 30 किमी दूर एलोरा की गुफाएँ हैं। एलोरा की गुफाओं में 34 गुफाएँ शामिल हैं। ये गुफाएँ बेसाल्टिक की पहाड़ी के किनारे-किनारे बनी हुई हैं। इन गुफाओं में हिंदू, जैन और बौद्ध तीन धर्मों के प्रति दर्शाई आस्था का त्रिवेणी संगम का प्रभाव देखने को मिलता है। ये गुफाएँ 350 से 700 ईसा पश्चात के दौरान अस्तित्व में आईं। 
अजंता एलोरा की गुफाएँ
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दक्षिण की ओर 12 गुफाएँ बौद्ध धर्म (महायान संप्रदाय पर आधारित), मध्य की 17 गुफाएँ हिंदू धर्म और उत्तर की 5 गुफाएँ जैन धर्म पर आधारित हैं। बौद्ध धर्म पर आधारित गुफाओं की मूर्तियों में बुद्ध की जीवनशैली की स्पष्ट झलक देखने को मिलती है। इन्हें देखकर तो यही लगता है मानो ध्यानमुद्रा में बैठे बुद्ध आज भी हमें शांति, सद्भाव व एकता का संदेश दे रहे हैं। 

यदि आप भी दुनिया घुमने के शौकीन हैं तथा कलाप्रेमी हैं तो अंजता-एलोरा आपके लिए एक अच्छा पर्यटनस्थल है। यहाँ की गुफाओं में की गई नायाब चित्रकारी व मूर्तिकला अपने आप में अद्वितीय है। इसके साथ ही यहाँ की गुफाएँ धार्मिक सद्माव की अनूठी मिसाल है। 

कैसे पहुँचें अजंता-एलोरा : 

औरंगाबाद से अजंता की दूरी - 101 किलोमीटर 
औरंगाबाद से एलोरा की दूरी - 30 किलोमीटर 

मुंबई, पुणे, अहमदाबाद, नासिक, इंदौर, धूले, जलगाँव, शिर्डी आदि शहरों से औरंगाबाद के लिए बस सुविधा उपलब्ध है। सोमवार का दिन छोड़कर आप कभी भी अंजता- एलोरा जा सकते हैं। औरंगाबाद रेलवे स्टेशन से दिल्ली व मुंबई के लिए ट्रेन सुविधा भी आसानी से मिल जाती है। औरंगाबाद रेलवे स्टेशन के पास विभाग का होटल है। इसके अलावा आप शिर्डी या नासिक में भी रात्रि विश्राम कर सकते हैं। 

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आमेर का किला |Amer Fort, Rajasthan



Amer ka kila (आमेर का किला) | History Of Amer Fort In Hindi



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राजस्थान की शान माना जाता है, आमेर का किला राजस्थान के सबसे अच्छे किलो में से एक है. इसकी नक्काशी, कलात्मक चित्रण, शीश महल के लिए विश्व प्रसिद्ध है.
प्राचीन काल में आमेर को अम्बावती, अमरपुरा तथा अमरगढ़ के नाम से जाना जाता था. आमेर का किला जयपुर से 11 किलोमीटर दूर जयपुर का ही एक उपनगर है. इसे ९६७ ईस्वी में मीणा राजा आलन सिंह ने बसाया था और इसे १०३७ ईस्वी में राजपूत जाति के कच्छावा कुल ने जीत लिया था.
यह शहर तीन ओर से अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ है। आमेर के किले चारो तरफ उची और मोटी दीवारे है जो की 12 किलोमीटर  तक फेली हुई है, जिनको किले की सुरक्षा के लिए बनाया गया था
Amer ka ऐतिहासिक किला 1589 ई. में बनना शरू हुआ और 1727 ई. में बनकर तैयार हुआ, इसे राजा मानसिंह, मिर्जा जयसिंह, सवाई जयसिंह ने बनवाया था. अभी जो राजा है उनका नाम सवाई पदमसिंह है.
आमेर के महल में जो चित्रकारी की गयी थी उसमे जो रंग काम में लिया गया था वह सब्जियों, एंव अन्य पोधो से बनाया गया था जिसकी चमक आज भी आँखों को चोंधिया देती है
आमेर के किले के आगे एक झील बनायीं गयी है जिसका नाम मावटा सरोवर है, इसके झील की बीच में एक बगीचा बनाया गया है जिसको केशर क्यारी बगीचा बोलते है, क्योंकी इस बगीचे में केशर उगाई जाती थी.
इस किले में प्रवेश करने से पहले दिल आराम बाग आता है, तो जानते है दिल आराम बाग के बारे में –

आमेर के किले (Amer Fort) के प्रमुख स्थल 

दिल आराम बाग (Dil Aaram Bagh) –

dil aaram bagh Amerइस सुन्दर व्य्वस्स्थित बाग का निर्माण 18वीं सदी में मावठा झील के उतरी किनारे पर किया गया था. बाग में दोनों और स्थित छतरिया, पूर्वी व पश्चिमी छोर पर स्तम्भों से युक्त आकर्षण हाल, फव्वारे,
जल प्रवाह, मध्य में बना होज, क्यारियां आदि ज्यामितीय तरीके से बनाये गये आकर्षण सुकुनदायक है. सम्भवत: इसी कारण इसका नाम दिल आराम बाग रखा गया है.


गणेश पोल (Ganesh Pol)-

Amer ke kila में प्रवेश करने के लिए पहले गेट को गणेश पोल कहते है, इस द्वार पर हिंदू भगवान गणेश जी की शानदार रंग बिरंगी मूर्ति भी रखी हुई है.  इसका निर्माण राजा जय सिंह द्वितीय ने 1611 से 1667 के बीच करवाया था.
ganesh pol amer fort
Ganesh Pol Amer fort
अम्‍बेर किले में प्रवेश के लिए सात मुख्‍य द्वार है जिनमें से गणेश पोल एक है. यह किले का मुख्य दरवाजा होता था जिससे केवल राजा महाराजा और उनके परिवार वाले आ सकते थे. जब भी राजा युद्ध जीत के आते थे तब इसी गेट से किले में प्रवेश करते थे और राणीया उपर से पुष्प वर्षा करती थी.

चाँद पोल दरवाजा (Moon Gate) –

Chand pol (moon gate) amer fortआमेर नगर से महल में आम जन के प्रवेश करने का मुख्य दरवाजा था, पश्चिममुखी (चंद्रोदय) होने के कारण इसका नाम चाँद पोल रखा गया. चाँद पोल की सबसे उपर की मंजिल पर नोबतखाना हुआ करता था जिसमे ढोल, तबला, नगाड़े आदि बजाये जाते थे.
“नोबत” एक प्रकार का संगीत था जिसकी बाद में कई प्रकार की किस्मे बन गयी. नोबत बजाने के विशिष्ठ नियम हुआ करते थे तथा श्रोताओ के लिए यह आवश्यक था की नोबत बजाते समय वे इसे खामोश रह कर सुने. नोबत नवाजी की यह परम्परा सिकन्दर महान के समय से आरम्भ हुई मानी जाती है.



 दीवान-ए-खास (शीशमहल) – (Diwan- A- Khass Sheesh Mahal)

Diwan- A- Khass Sheesh Mahal (amer fort jaipur)आमेर महल के आकर्षणों में से एक दीवान-ए-खास का निर्माण राजा जयसिंह ने 1621-67 ई. में करवाया था. निर्माता के नाम पर इसे जय मंदिर एंव कांच की सुन्दर जड़ाई कार्य होने के कारन इसे “शीशमहल” भी कहते है.
शीशमहल को बनाने के लिए बेल्जियम देश से शीशे मगवाये गये थे. इसमे एक मोमबती भी जलाई जाये तो पूरा शीशमहल चमक उठता है. दीवान-ए-खास में राजा अपने खास मेहमानों आते और दुसरे शाशको के राजदूतो से मिलते थे. इसके प्रथम तल पर कांच व बेल-बुटो के चित्रों की कलाकारी से युक्त जस मंदिर स्थित है. इस भवन के उतर की और हम्माम (स्नानघर) है.
जस मंदिर के मेहराबदार दरवाजो एंव झरोखो पर सुगन्धित घास के पर्दे लगे रहते थे जिनको पानी से भिगोया जाकर गर्मी में महल को ठंडा रखा जाता था. पर्दों में प्रवेश करने वाली हवा महल में ठंडक के साथ-साथ घास की सुगन्ध भी पहुचती रहती थी. शीश महल के ठीक सामने चार बाग मुग़ल शैली का खंडो से युक्त छोटा बगीचा है, जिसके पश्चिम में राजा का विश्रामगृह “सुख निवास” स्थित है.

दीवान-ए-आम (Diwan- A- Aam)

diwan e aam amer ka kilaदीवान-ए-आम जो की आमेर की जनता के लिए होता था, जहां पर राजा जनता की फरियाद सुनते थे. दीवान-ए-आम 27 पिल्लर बनाया गया है यह पिल्लर दो तरह के पत्थरों से बना हुआ है.
जिसमे लाल रंग के पत्थर और दुसरे मार्बल के पत्थरों से बनाया गया है, इसमे मार्बल पत्थर हिन्दुओ का प्रतीक है और लाल पत्थर मुस्लिमो की संस्कृति को दर्शाता है.
इस इमारत को दो तरह के पत्थरों से बनाने के पीछे एक कारण यह भी है की अकबर की शादी जोधा से हुई थी.


देवी शिला माता मंदिर (Shila Devi Temple Amber Fort)

Shila Devi Temple Amber Fortआमेर महल के अन्दर एक मंदिर भी है जो हिंदू धर्म की देवी शिला माता को समर्पित है. कहा जाता है कि राजा मान सिंह काली माता के बहुत बड़े भक्‍त थे, वह इस मूर्ति को बंगाल से लेकर आए थे।
प्रतापदित्य के राज्य में केदार राजा से युद्ध करने पर जब वह प्रथम बार असफल रहे तो उन्होंने काली की उपासना की. काली देवी ने प्रसन्न होकर स्वप्न में उन से अपने उद्दार का वचन लिया और उन्हें विजयी होने का वरदान दिया. उसी के फलस्वरूप समुंद्र में शिला रूप में पड़ी हुई यह प्रतिमा महाराजा दुवारा आमेर लाई गई और शिला देवी के नाम से घोषित हुई.
कुछ लोगो का कहना है कि केदार राजा ने हार मान कर महाराजा मानसिंह को अपनी पुत्री ब्याह दी थी और साथ में यह मूर्ति भेंट की थी. पूरे मंदिर के निर्माण में सफेद संगमरमर का उपयोग किया गया है। माना जाता है कि देवी काली अम्‍बेर किले की रक्षक है.
शिला माता का प्रसिद्ध यह देव-स्थल भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने, देवी चमत्कारों के कारण श्रद्धा का केन्द्र है. शिला माता की मूर्ति अत्यंत मनोहारी है और शाम को यहाँ धूपबत्तियों की सुगंध में जब आरती होती है तो भक्तजन किसी अलौकिक शक्ति से भक्त-गण प्रभावित हुए बिना नहीं रहते है.

आमेर किले की कुछ खास बाते (Amer ka kila Facts in hindi)-

  • इसका निर्माण 16वीं शताब्दी में राजा मानिंसह ने करवाया था। यह विश्व धरोहर में भी शामिल है।
  • 2013 में कोलंबिया के फनों पेन्ह में ली गयी 37 वी वर्ल्ड हेरिटेज मीटिंग में आमेर किले के साथ ही राजस्थान के पाँच और किलो को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट में शामिल किया गया था.
  • ये महल हिंदू ओर मुगल आर्किटेक्च का बेजोड़ नमूना है। इसे किले में बना आमेर पैलेस खास तौर पर राज परिवार के रहने के लिए बनाया गया था.
  • आमेर के किले के ऊपर दूसरी पहाड़ी पर जयगढ़ किला भी बना हुआ है जिसे राजा जयसिंह ने बनवाया था यह दोनों किले एक 2 किलोमीटर गुप्त सुरंग से जुड़े हुए है. इस सुरंग को गुप्त तरीके से किले से बाहर निकलने के लिए बनाया गया था.
  • दीवान – ए – आम, शीश महल, गणेश पोल, सुख निवास, जैस मंदिर, दिला राम बाग और मोहन बाड़ी आदि अम्‍बेर किला के आकर्षणों में से एक है।

आमेर किले का पार्किंग चार्ज (Amer fort Parking Charge)-

आमेर के किले में आप दो जगह अपना वाहन खड़ा कर सकते है, पहली जगह किले के नीचे है और दूसरी किले के ऊपर है. अगर आप ऊपर पार्क करना चाहते है तो गाडी आप को अच्छे से चलानी आनी चाहिए क्योंकि किले के ऊपर की पार्किंग पहाड़ी पर स्थित है.

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क़ुतुब मीनार | Qutub Minar, Delhi



                                                       

क़ुतुब मीनार |Qutub Minar, Delhi


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72.5 मीटर (237.86 फीट) मीटर चौडी़ कुतुब मीनार, विश्व की सर्वोच्च ईंट निर्मित अट्टालिका(मीनार) है।


कुतुब मीनार भारत में दक्षिण दिल्ली शहर के महरौली भाग में स्थित, ईंट से बनी विश्व की सबसे ऊँची मीनार है। इसकी ऊँचाई 72.5 मीटर (237.86 फीट) और व्यास १४.३ मीटर है, जो ऊपर जाकर शिखर पर 2.75 मीटर (9.02 फीट) हो जाता है। इसमें ३७९ सीढियाँ हैं।[1] मीनार के चारों ओर बने अहाते में भारतीय कला के कई उत्कृष्ट नमूने हैं, जिनमें से अनेक इसके निर्माण काल सन 1192 के हैं। यह परिसर युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर के रूप में स्वीकृत किया गया है।
अफ़गानिस्तान में स्थित, जाम की मीनार से प्रेरित एवं उससे आगे निकलने की इच्छा से, दिल्ली के प्रथम मुस्लिम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक, ने इस्लाम फैलाने की सनक के कारण वेदशाला को तोड़कर कुतुब मीनार का पुनर्निर्माण सन ११९३ में आरंभ करवाया, परंतु केवल इसका आधार ही बनवा पाया। उसके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने इसमें तीन मंजिलों को बढ़ाया और सन १३६८ में फीरोजशाह तुगलक ने पाँचवीं और अंतिम मंजिल बनवाई । मीनार को लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया है, जिस पर कुरान की आयतों की एवं फूल बेलों की महीन नक्काशी की गई है जो कि फूल बेलों को तोड़कर अरबी शब्द बनाए गए हैं कुरान की आयतें नहीं है। कुतुब मीनार पुरातन दिल्ली शहर, ढिल्लिका के प्राचीन किले लालकोट के अवशेषों पर बनी है। ढिल्लिका अंतिम हिंदू राजाओं तोमर और चौहान की राजधानी थी। कुतुबमीनार का वास्तविक नाम विष्णु स्तंभ है जिसे कुतुबदीन ने नहीं बल्कि सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक और खगोलशास्त्री वराहमिहिर ने बनवाया था। कुतुब मीनार के पास जो बस्ती है उसे महरौली कहा जाता है। यह एक संस्कृ‍त शब्द है जिसे मिहिर-अवेली कहा जाता है। इस कस्बे के बारे में कहा जा सकता है कि यहाँ पर विख्यात खगोलज्ञ मिहिर (जो कि विक्रमादित्य के दरबार में थे) रहा करते थे। उनके साथ उनके सहायक, गणितज्ञ और तकनीकविद भी रहते थे। वे लोग इस कथित कुतुब मीनार का खगोलीय गणना, अध्ययन के लिए प्रयोग करते थे। दो सीटों वाले हवाई जहाज से देखने पर यह मीनार 24 पंखुड़ियों वाले कमल का फूल दिखाई देता है। इसकी एक-एक पंखुड़ी एक होरा या 24 घंटों वाले डायल जैसी दिखती है। चौबीस पंखुड़ियों वाले कमल के फूल की इमारत पूरी तरह से एक‍ हिंदू विचार है। इसे पश्चिम एशिया के किसी भी सूखे हिस्से से नहीं जोड़ा जा सकता है जोकि वहाँ पैदा ही नहीं होता है। इस टॉवर के चारों ओर हिंदू राशि चक्र को समर्पित 27 नक्षत्रों या तारामंडलों के लिए मंडप या गुंबजदार इमारतें थीं। कुतुबुद्‍दीन के एक विवरण छोड़ा है जिसमें उसने लिखा कि उसने इन सभी मंडपों या गुंबजदार इमारतों को नष्ट कर दिया था, लेकिन उसने यह नहीं लिखा कि उसने कोई मीनार बनवाई। मुस्लिम हमलावर हिंदू इमारतों की स्टोन-ड्रेसिंग या पत्‍थरों के आवरण को निकाल लेते थे और मूर्ति का चेहरा या सामने का हिस्सा बदलकर इसे अरबी में लिखा अगला हिस्सा बना देते थे। बहुत सारे परिसरों के स्तंभों और दीवारों पर संस्कृत में लिखे विवरणों को अभी भी पढ़ा जा सकता है।इस मीनार का प्रवेश द्वार उत्तर दिशा में है, पश्चिम में नहीं, जबकि इस्लामी धर्मशास्त्र और परंपरा में पश्चिम का महत्व है।यह खगोलीय प्रेक्षण टॉवर था। पास में ही जंग न लगने वाले लोहे के खंभे पर ब्राह्मी लिपि में संस्कृत में लिखा है कि विष्णु का यह स्तंभ विष्णुपाद गिरि नामक पहाड़ी पर बना था। इस विवरण से साफ होता है कि मीनार के मध्य स्थित मंदिर में लेटे हुए विष्णु की मूर्ति को मोहम्मद गोरी और उसके गुलाम कुतुबुद्दीन ने नष्ट कर दिया था। खंभे को एक हिंदू राजा की पूर्व और पश्चिम में जीतों के सम्मानस्वरूप बनाया गया था। स्तंभ में सात तल थे जोकि एक सप्ताह को दर्शाते थे, लेकिन अब स्तंभ में केवल पाँच तल हैं। छठवें को गिरा दिया गया था और समीप के मैदान पर फिर से खड़ा कर दिया गया था। सातवें तल पर वास्तव में चार मुख वाले ब्रह्मा की मूर्ति है जो कि संसार का निर्माण करने से पहले अपने हाथों में वेदों को लिए थे।ब्रह्मा की मूर्ति के ऊपर एक सफेद संगमरमर की छतरी या छत्र था जिसमें सोने के घंटे की आकृति खुदी हुई थी। इस टॉवर के शीर्ष तीन तलों को मूर्तिभंजक मुस्लिमों ने बर्बाद कर दिया जिन्हें ब्रह्मा की मूर्ति से घृणा थी। मुस्लिम हमलावरों ने नीचे के तल पर शैय्या पर आराम करते विष्णु की मूर्ति को भी नष्ट कर दिया। लौह स्तंभ को गरुड़ ध्वज या गरुड़ स्तंभ कहा जाता था। यह विष्णु के मंदिर का प्रहरी स्तंभ समझा जाता था। एक दिशा में 27 नक्षत्रों के म‍ंदिरों का अंडाकार घिरा हुआ भाग था।टॉवर का घेरा ठीक ठीक तरीके से 24 मोड़ देने से बना है और इसमें क्रमश: मोड़, वृत की आकृति और त्रिकोण की आकृतियां बारी-बारी से बदलती हैं। इससे यह पता चलता है कि 24 के अंक का सामाजिक महत्व था और परिसर में इसे प्रमुखता दी गई थी। इसमें प्रकाश आने के लिए 27 झिरी या छिद्र हैं। यदि इस बात को 27 नक्षत्र मंडपों के साथ विचार किया जाए तो इस बात में कोई संदेह नहीं रह जाता है कि टॉवर खगोलीय प्रेक्षण स्तंभ था।[2]

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