प्राचीन काल में आमेर को अम्बावती, अमरपुरा तथा अमरगढ़ के नाम से जाना जाता था. आमेर का किला जयपुर से 11 किलोमीटर दूर जयपुर का ही एक उपनगर है. इसे ९६७ ईस्वी में मीणा राजा आलन सिंह ने बसाया था और इसे १०३७ ईस्वी में राजपूत जाति के कच्छावा कुल ने जीत लिया था.
यह शहर तीन ओर से अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ है। आमेर के किले चारो तरफ उची और मोटी दीवारे है जो की 12 किलोमीटर तक फेली हुई है, जिनको किले की सुरक्षा के लिए बनाया गया था
Amer ka ऐतिहासिक किला 1589 ई. में बनना शरू हुआ और 1727 ई. में बनकर तैयार हुआ, इसे राजा मानसिंह, मिर्जा जयसिंह, सवाई जयसिंह ने बनवाया था. अभी जो राजा है उनका नाम सवाई पदमसिंह है.
आमेर के महल में जो चित्रकारी की गयी थी उसमे जो रंग काम में लिया गया था वह सब्जियों, एंव अन्य पोधो से बनाया गया था जिसकी चमक आज भी आँखों को चोंधिया देती है
आमेर के किले के आगे एक झील बनायीं गयी है जिसका नाम मावटा सरोवर है, इसके झील की बीच में एक बगीचा बनाया गया है जिसको केशर क्यारी बगीचा बोलते है, क्योंकी इस बगीचे में केशर उगाई जाती थी.
इस किले में प्रवेश करने से पहले दिल आराम बाग आता है, तो जानते है दिल आराम बाग के बारे में –
आमेर के किले (Amer Fort) के प्रमुख स्थल
दिल आराम बाग (Dil Aaram Bagh) –
इस सुन्दर व्य्वस्स्थित बाग का निर्माण 18वीं सदी में मावठा झील के उतरी किनारे पर किया गया था. बाग में दोनों और स्थित छतरिया, पूर्वी व पश्चिमी छोर पर स्तम्भों से युक्त आकर्षण हाल, फव्वारे,
जल प्रवाह, मध्य में बना होज, क्यारियां आदि ज्यामितीय तरीके से बनाये गये आकर्षण सुकुनदायक है. सम्भवत: इसी कारण इसका नाम दिल आराम बाग रखा गया है.
गणेश पोल (Ganesh Pol)-
Amer ke kila में प्रवेश करने के लिए पहले गेट को गणेश पोल कहते है, इस द्वार पर हिंदू भगवान गणेश जी की शानदार रंग बिरंगी मूर्ति भी रखी हुई है. इसका निर्माण राजा जय सिंह द्वितीय ने 1611 से 1667 के बीच करवाया था.
Ganesh Pol Amer fort
अम्बेर किले में प्रवेश के लिए सात मुख्य द्वार है जिनमें से गणेश पोल एक है. यह किले का मुख्य दरवाजा होता था जिससे केवल राजा महाराजा और उनके परिवार वाले आ सकते थे. जब भी राजा युद्ध जीत के आते थे तब इसी गेट से किले में प्रवेश करते थे और राणीया उपर से पुष्प वर्षा करती थी.
चाँद पोल दरवाजा (Moon Gate) –
आमेर नगर से महल में आम जन के प्रवेश करने का मुख्य दरवाजा था, पश्चिममुखी (चंद्रोदय) होने के कारण इसका नाम चाँद पोल रखा गया. चाँद पोल की सबसे उपर की मंजिल पर नोबतखाना हुआ करता था जिसमे ढोल, तबला, नगाड़े आदि बजाये जाते थे.
“नोबत” एक प्रकार का संगीत था जिसकी बाद में कई प्रकार की किस्मे बन गयी. नोबत बजाने के विशिष्ठ नियम हुआ करते थे तथा श्रोताओ के लिए यह आवश्यक था की नोबत बजाते समय वे इसे खामोश रह कर सुने. नोबत नवाजी की यह परम्परा सिकन्दर महान के समय से आरम्भ हुई मानी जाती है.
दीवान-ए-खास (शीशमहल) – (Diwan- A- Khass Sheesh Mahal)
आमेर महल के आकर्षणों में से एक दीवान-ए-खास का निर्माण राजा जयसिंह ने 1621-67 ई. में करवाया था. निर्माता के नाम पर इसे जय मंदिर एंव कांच की सुन्दर जड़ाई कार्य होने के कारन इसे “
शीशमहल” भी कहते है.
शीशमहल को बनाने के लिए बेल्जियम देश से शीशे मगवाये गये थे. इसमे एक मोमबती भी जलाई जाये तो पूरा शीशमहल चमक उठता है. दीवान-ए-खास में राजा अपने खास मेहमानों आते और दुसरे शाशको के राजदूतो से मिलते थे. इसके प्रथम तल पर कांच व बेल-बुटो के चित्रों की कलाकारी से युक्त जस मंदिर स्थित है. इस भवन के उतर की और हम्माम (स्नानघर) है.
जस मंदिर के मेहराबदार दरवाजो एंव झरोखो पर सुगन्धित घास के पर्दे लगे रहते थे जिनको पानी से भिगोया जाकर गर्मी में महल को ठंडा रखा जाता था. पर्दों में प्रवेश करने वाली हवा महल में ठंडक के साथ-साथ घास की सुगन्ध भी पहुचती रहती थी. शीश महल के ठीक सामने चार बाग मुग़ल शैली का खंडो से युक्त छोटा बगीचा है, जिसके पश्चिम में राजा का विश्रामगृह “सुख निवास” स्थित है.
दीवान-ए-आम (Diwan- A- Aam)
दीवान-ए-आम जो की आमेर की जनता के लिए होता था, जहां पर राजा जनता की फरियाद सुनते थे. दीवान-ए-आम 27 पिल्लर बनाया गया है यह पिल्लर दो तरह के पत्थरों से बना हुआ है.
जिसमे लाल रंग के पत्थर और दुसरे मार्बल के पत्थरों से बनाया गया है, इसमे मार्बल पत्थर हिन्दुओ का प्रतीक है और लाल पत्थर मुस्लिमो की संस्कृति को दर्शाता है.
इस इमारत को दो तरह के पत्थरों से बनाने के पीछे एक कारण यह भी है की अकबर की शादी जोधा से हुई थी.
देवी शिला माता मंदिर (Shila Devi Temple Amber Fort)
आमेर महल के अन्दर एक मंदिर भी है जो हिंदू धर्म की देवी शिला माता को समर्पित है. कहा जाता है कि राजा मान सिंह काली माता के बहुत बड़े भक्त थे, वह इस मूर्ति को बंगाल से लेकर आए थे।
प्रतापदित्य के राज्य में केदार राजा से युद्ध करने पर जब वह प्रथम बार असफल रहे तो उन्होंने काली की उपासना की. काली देवी ने प्रसन्न होकर स्वप्न में उन से अपने उद्दार का वचन लिया और उन्हें विजयी होने का वरदान दिया. उसी के फलस्वरूप समुंद्र में शिला रूप में पड़ी हुई यह प्रतिमा महाराजा दुवारा आमेर लाई गई और शिला देवी के नाम से घोषित हुई.
कुछ लोगो का कहना है कि केदार राजा ने हार मान कर महाराजा मानसिंह को अपनी पुत्री ब्याह दी थी और साथ में यह मूर्ति भेंट की थी. पूरे मंदिर के निर्माण में सफेद संगमरमर का उपयोग किया गया है। माना जाता है कि देवी काली अम्बेर किले की रक्षक है.
शिला माता का प्रसिद्ध यह देव-स्थल भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने, देवी चमत्कारों के कारण श्रद्धा का केन्द्र है. शिला माता की मूर्ति अत्यंत मनोहारी है और शाम को यहाँ धूपबत्तियों की सुगंध में जब आरती होती है तो भक्तजन किसी अलौकिक शक्ति से भक्त-गण प्रभावित हुए बिना नहीं रहते है.
आमेर किले की कुछ खास बाते (Amer ka kila Facts in hindi)-
- इसका निर्माण 16वीं शताब्दी में राजा मानिंसह ने करवाया था। यह विश्व धरोहर में भी शामिल है।
- 2013 में कोलंबिया के फनों पेन्ह में ली गयी 37 वी वर्ल्ड हेरिटेज मीटिंग में आमेर किले के साथ ही राजस्थान के पाँच और किलो को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट में शामिल किया गया था.
- ये महल हिंदू ओर मुगल आर्किटेक्च का बेजोड़ नमूना है। इसे किले में बना आमेर पैलेस खास तौर पर राज परिवार के रहने के लिए बनाया गया था.
- आमेर के किले के ऊपर दूसरी पहाड़ी पर जयगढ़ किला भी बना हुआ है जिसे राजा जयसिंह ने बनवाया था यह दोनों किले एक 2 किलोमीटर गुप्त सुरंग से जुड़े हुए है. इस सुरंग को गुप्त तरीके से किले से बाहर निकलने के लिए बनाया गया था.
- दीवान – ए – आम, शीश महल, गणेश पोल, सुख निवास, जैस मंदिर, दिला राम बाग और मोहन बाड़ी आदि अम्बेर किला के आकर्षणों में से एक है।
आमेर किले का पार्किंग चार्ज (Amer fort Parking Charge)-
आमेर के किले में आप दो जगह अपना वाहन खड़ा कर सकते है, पहली जगह किले के नीचे है और दूसरी किले के ऊपर है. अगर आप ऊपर पार्क करना चाहते है तो गाडी आप को अच्छे से चलानी आनी चाहिए क्योंकि किले के ऊपर की पार्किंग पहाड़ी पर स्थित है.